Issue 46 – मोटे अनाज को लेकर जन जागरूकता


भोजन की थाली में मोटे अनाज से बने व्यंजन को अनिवार्य रूप से शामिल करना चाहिए। कांटाफोड़ प्रगति समिति की बैठक में समिति लीडर्स के द्वारा यह निर्णय लिया गया। 

समिति लीडर्स और कार्यकर्ताओं की चर्चा के दौरान यह निकलकर आया कि हमें अपने कार्य क्षेत्र में दीवारों पर पेंटिंग, मोबाइल सिनेमा एवं नुक्कड़ नाटक के माध्यम से मोटे अनाज के उपयोग एवं महत्व के संदर्भ में जागरूकता फैलानी है, जिससे लोगों को ज्वार,बाजरा, रागी, कुट्टू कोदो, कंगनी इत्यादि मोटे अनाज के फ़ायदों के बारे में पता चले।

इस निर्णय के आधार पर कांटाफोड़ प्रगति समिति के माध्यम से कांटाफोड़ के आस-पास 15 पंचायतों में ‘पात्रता स्वास्थ्य एवं पोषण’ कार्यक्रम के तहत 20 गांवों में ज्वार के महत्व के सन्दर्भ में दीवारों पर पेंटिंग करवाई गई है। मोबाइल सिनेमा के माध्यम से पांच गांवों में “ज्वार गाथा“ फिल्म दिखाई गई, ताकि लोगों को ज्वार से बने पकवान खाने के लिए प्रेरित किया जा सके। आने वाले समय में सभी 20 गांवों में इसे दिखाने का लक्ष्य रखा गया है।

प्राचीन काल से ही मोटे अनाज हमारे भोजन का हिस्सा रहे हैं। इनसे अलग-अलग व्यंजन बनाने की विधि और इनसे होने वाले लाभ से जुड़ी जानकारी को नुक्कड़ नाटक एवं दीवार पर पेंटिंग के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है।

भारत में इनकी पैदावार मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा इत्यादि राज्यों में की जाती है। ये सभी वर्षा-आधारित फ़सल है, जिनमें बहुत कम लागत लगती है और साथ ही मवेशी इनकी कडबी बड़े ही चाव के साथ खाना पसंद करते हैं।

मोटे अनाज में फ़ाइबर प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, फ़ॉस्फ़ोरस, ज़िंक, आयरन, एमिनो- एसिड्स इत्यादि पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनमे गेहूं की तरह ग्लूटेन नहीं होता हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

बाज़ार में ज्वार और अन्य मोटे अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं होने के कारण किसानों ने इन फ़सलों की खेती करना कम कर दिया है। लोग कम मेहनत में ज़्यादा उत्पादन के लिए सोयाबीन की खेती करने लग गए हैं, बावजूद इसके कि मोटे अनाज मौसम का आघात बख़ूबी झेल लेते हैं, जबकि सोयाबीन में मौसम के बदलते रुख़ को सहने की क्षमता कम है।

भारत में वर्ष 2018 को “राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष” के रूप में मनाया गया था। सरकार ने इन मिलेट्स को पोषक अनाज या न्यूट्री-सीरियल्स घोषित किया था। भारत के प्रस्ताव के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ घोषित किया। 

ज्वार एक प्राचीन अनाज है, स्वास्थ्य और पोषण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण एवं लाभदायक है। इस माह की हिस्सेदारी सभा की बैठकों और ‘ज्वार गाथा’ फ़िल्म के प्रदर्शन में ज्वार के महत्व पर चर्चा के दौरान सभी सदस्यों के पुराने अनुभव ताज़ा हो गए। उन्होंने बताया ज्वार को खाने से ख़ून बढता है, इसकी रोटी आसानी से पच जाती है और इससे गैस की शिकायत भी नहीं होती है; ज्वार की रोटी गर्भवती महिलाओं को भी खिला सकते हैं। शक्कर (शुगर) की बीमारी वालों को ज्वार की रोटी खिलाते हैं ताकि उनकी शुगर नियंत्रण में रहे। यूं हम सभी को ज्वार के भोजन से बहुत फ़ायदा होता है।पहले हमारे गांव में सभी ज्वार की रोटी और पकवानों का भोजन ज़्यादा करते थे, तो हमारे परिवारों में लोग बीमार कम पड़ते थे, जिस कारण हमारा इलाज पर कम खर्च होता था, मगर अब देखो तो हर परिवार में आधे सदस्यों की गोली-दवाईयां चल रही होती हैं। हम सभी ने मिलकर इसके बारे में सोचा कि हमारे खेतो में थोड़ी-थोड़ी ज्वार की खेती करेंगे। अगर केवल एक किसान ज्वार लगाता है तो उसको पक्षी परेशान करते हैं लेकिन हम सभी को मिलकर ज्वार की खेती को बढावा देना होगा। खराड़ी, हीरापुर (खेड़ा), तुमड़ीखेड़ा, जानसुर, भायली और लालखेड़ी आदि गांवों के सदस्यों ने कहा कि वे सभी मिलकर ज्वार की खेती को बढावा देंगे।


छायांकन: कचरू अलावा , अशोक नायक, सैलेश अलावा, अशोक सैनी, नरेंद्र बरवाल, दिलीप कुमार ईवने, करण बछानिया

लेखन: संतोष सैनी


संपादन: आजाद सिंह खिची


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