पशुओं के लिए आयुर्वेदिक औषधि और पौष्टिक आहार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बागली प्रगति समिति के पशुधन कार्यक्रम ने अप्रैल 2024 को बावड़ीखेड़ा गांव में एक आयुर्वेदिक औषधि केंद्र की स्थापना की है। बागली जनपद पंचायत (विकासखंड) के गांवों में अधिकतर लोग बकरी पालन करके अपनी आजीविका चलाते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि लोग बकरियों को चराने जंगल पर ही निर्भर रहते हैं। लेकिन शुष्क गर्मी के मौसम में जंगलों में बकरियों के लायक पर्याप्त चारा नहीं होता है। कई लोग बकरियों को जंगल की पत्तियों के अलावा घर में उपलब्ध एक तरह के ही अनाज के दाने, जैसे गेहूं या फिर मक्का खिलाते आ रहे हैं, जिसे पचाने में बकरियों को काफ़ी दिक्कत होती है। कभी-कभी लोग ज़्यादा मात्रा में बकरियों को ये दाने खिला देते हैं, जिस कारण उन्हें दस्त भी लग जाते हैं।
आयुर्वेदिक औषधि केंद्र में दाना मिश्रण[i], लिवर टॉनिक[ii], नीम तेल[iii] और पशु चाट[iv] मिनरल ब्रिक बनाए जा रहे हैं, और इन्हें बनाने की ज़िम्मेदारी गांव की मंजू हार्मर और बबीता हार्मर ने उठाई है।बकरियों को दाना मिश्रण खाने और पचाने में आसानी होती है, साथ ही यह पोषक तत्वों से भरपूर और स्वादिष्ट भी होता है । कुछ समय पहले इन उत्पादों को घर पर बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए राजस्थान से डा भीष्म सिंह आए थे, जो 30 वर्षों से बकरी पालन पर काम कर रहे हैं। उन्होंने बागली लोकेशन (कार्य-क्षेत्र) के रामपुरा गांव में स्वयं सहायता समूह और पशुधन समूह से जुड़ी महिलाओं को दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया था । यहीं से सीखकर मंजू हार्मर और बबीता हार्मर ने आयुर्वेदिक औषधियां बनानी शुरु कीं । औषधि बनाने के लिए उन्हें कुछ कच्ची सामग्री बागली बाज़ार से लानी पड़ती है, और कुछ गांव में ही मिल जाती है। मंजू बताती हैं कि शुरुआत के दिनों में पशुधन कार्यक्रम की टीम बाज़ार से सामग्री खरीदने में उनका साथ देती थी, ताकि वे सामग्री की सही पहचान कर सकें, और यह भी जान जाएं कि कहां-कहां से कौनसी चीज़ें लेनी हैं। लेकिन अब वे स्वयं ही खरीददारी कर लेती हैं। हां, औषधि बनाते समय पशुधन कार्यक्रम की टीम भी मौजूद रहती है, इसका ख़याल रखने कि औषधि में सामग्री की मात्रा कम-ज़्यादा न हो और उसकी गुणवत्ता भी बरक़रार रहे।
पिछले एक महीने में उन्होंने 4 क्विंटल दाना मिश्रण, 4 लीटर नीम तेल, 10 लीटर लिवर टॉनिक और 105 पशु चाट बेचा है। बकरी पालन से जुड़े ज़्यादातर लोग इन उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्हें इसका फ़ायदा भी मिल रहा है। दाना मिश्रण खिलाने से बकरे के वज़न में वृद्धि होती है और गर्भवती बकरी के लिए यह बहुत लाभदायक होता है, जिससे बच्चा और मा दोनों ही स्वस्थ रहते हैं। नीम तेल का इस्तेमाल पशुओं में होने वाले चर्म रोग और घाव में असरदार साबित हो रहा है। जिन बकरियों या बड़े पशुओं को भूख नहीं लगती, या उनको बेचैनी रहती थी, उन्हें टॉनिक पिलाने से आराम मिल रहा है। बबीता बताती हैं कि बाज़ार में मिलने वाली दवाओं के मुकाबले ये दवाएं सस्ती हैं, और इनके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते।
पशुधन कार्यक्रम से जुड़े डॉ आशीष अवस्थी बताते हैं कि बागली विकासखंड के गांवों में बकरियों को प्रसव के दौरान काफ़ी समस्याएं आती हैं। जैसे बच्चे (मेमने) का पेट में ही फंस जाना, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो जाती है और कभी-कभी मां को भी बचाया नहीं जा पाता है। इसलिए लोगों को बकरियों के आहार और स्वास्थ्य पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। इन उत्पादों का इस्तेमाल कैसे और किस मात्रा में करना है, इस हेतु पशुधन कार्यक्रम की टीम लगातार लोगों से संवाद कर रही है।
औषधि केंद्र खुलने से मंजू हार्मर और बबीता हार्मर काफ़ी ख़ुश हैं। उनके लिए यह अतिरिक्त आय का ज़रिया बन गया है – एक ही महीने के अन्दर उन्हें रु. 4,000 का मुनाफ़ा हुआ है। आयुर्वेदिक औषधि केंद्र को बनाने में आर्थिक सहयोग समाज प्रगति सहयोग संस्था और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा किया गया। निश्चय ही पशुधन कार्यक्रम की यह पहल पशुओं में होने वाली बीमारियों को रोकने में सहायक होगी, साथ ही इससे पशुपालकों की आमदनी बढ़ेगी।
[i] अलग-अलग अनाज को मिलाकर बनाया गया पोषण आहार
[ii] भूख बढ़ाने और पाचन क्रिया को सही करने के लिए तरल पेय
[iii] चर्म रोग और घाव के संक्रमण रोकने की दवा
[iv] पोषक तत्वों की कमी को दूर करने वाली वाली ईंट, जिसे पशु चाटते हैं
लेखन: प्रदीप लेखवार
स्त्रोत: डॉ आशीष अवस्थी
फोटोग्राफी: आजाद सिंह खिची और डॉ आशीष अवस्थी