Issue 59 – श्रमदान कार्यक्रम


खरगोन ज़िले की भगवानपुरा तहसील का एक गांव है गुलझिरी, जो लगभग 5 कि.मी. के दायरे में फैली हुई पहाड़ी श्रंखला पर स्थित है । यहां कुल 147 घर बसे हुए हैं, लेकिन रोज़गार और आमदनी की कमी के कारण अधिकांश लोग शहरों की और पलायन करते हैं ।

इन ग़रीब क्षेत्रों में विकास लाने के लिए लंबे समय के प्रयासों के बाद समाज प्रगति सहयोग (एस पी एस) संस्था वाटरशेड प्रबंधन का काम शुरू करने में सफ़ल हो रही है । इस दूरदराज़ गांव में काम शुरू करना संस्था के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण था । एक अज्ञात संगठन के प्रवेश पर लोग इसपर तुरंत विश्वास तो नहीं कर पाए, उन्हें लगा की औरों की तरह ही सुविधा और योजना के नाम पर पैसे लेकर चले जाएंगे या फिर काम अधूरा छोड़कर किसी समस्या में उलझा देंगे । ऐसे पूर्व अनुभवों और वर्तमान शंकाओं की वजह से गांववालों ने सहयोग करने से इनकार कर दिया । लेकिन संस्था के कार्यकर्ता लगातार गांव में घूम-घूम कर लोगों से बातचीत और चर्चा करते रहे और उन्हें अपने किए गए अन्य कामों के बारे में बताते रहे, जिससे लोगों में विश्वास बढ़ा ।

प्रारंभ में केवल दो ही गांववाले साइट पर काम करने आए । लेकिन टीम ने हार नहीं मानी और प्रयास जारी रखा, काम चलता रहा । लेकिन जब काम पे आने वाले लोगों की संख्या नहीं बढ़ी, तो टीम ने गांव के कुछ लोगों को पुराने कार्य-स्थान पर “एक्सपोज़र विज़िट” पर ले जाने का फ़ैसला किया, जहां संस्था के वाटरशेड प्रबंधन कार्य का अच्छा प्रभाव पड़ा है । गुलझिरी में काम शुरू होने के लगभग एक महीने बाद गांव की 25 महिलाओं को भिकनगांव कार्यस्थल में वाटरशेड कार्यक्रम की विज़िट करवाई गई, जहां इस काम ने न केवल गांव के लोगों के पलायन को रोक दिया है, बल्कि कृषि को बेहतर बनाने में भी मदद की है । इस विज़िट ने लोगों में संस्था के काम के लाभ के प्रति विश्वास जागृत किया ।

गुलझिरी के लोगों ने देखा कि संस्था द्वारा लागू किए गए कार्य से उचित समय पर भुगतान मिलता है, जिसकी प्रति दिन मजदूरी मनरेगा योजना के ही अनुसार रु. 243 है, और कार्य प्रणाली में पारदर्शिता है – यानी जितना काम होता है उसकी पूरी और सही मजदूरी मिलती है, और काम करने वालों के ही खातों में सीधा भुगतान होता है । और सबसे बड़ी बात यह कि महिलाओं व पुरुषों की मजदूरी की रकम एक समान, जो उन्होंने जीवन में पहली बार अनुभव किया । तो लोग धीरे-धीरे काम के लिए आगे आने लगे । जो बाहर काम करने गए थे, उनमें से भी कई अपने पलायन स्थानों से वापस आ गए । आख़िर कार्यस्थल पर 400 तक की गिनती में श्रमिक पहुंचने लगे, जिनको समायोजित करने के लिए टीम ने पहले ही चार अलग-अलग कार्यस्थलों का चयन कर रखा था । श्रमिकों को इनके बीच विभाजित किया गया ।

अपने वाटरशेड कार्यक्रम के तहत संस्था अब किसानों के साथ खेतों में मेड़ बंदी का काम भी कर रही है । पहाड़ी या ढलान वाली भूमि में, शीर्ष उपजाऊ मिट्टी कटाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जहां बारिश के पानी का बहाव ऊपरी मिट्टी को बहा ले जाता है । मेड़ बंदी का मुख्य उद्देश्य है मिट्टी के कटाव को रोकना – और इस काम के ज़रिए गांव के लोगों को गांव में ही रोज़गार के अवसर प्रदान करना । साथ ही बोल्डर चेक की प्रक्रिया ढलान वाले क्षेत्र में पत्थरों से निर्मित एक वाटरशेड सरंचना है, जो बारिश के पानी को तेज़ी से बहने से रोकती है । तो गुलझिरी गांव में मेड़ बंदी व बोल्डर चेक का काम शुरू हुआ, जो खेतों में पानी के प्रबंधन और बेहतर भूमि की तैयारी में किसानों की मदद करता है ।

एस पी एस के कार्यान्वित कार्यों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है स्थानीय लोगों द्वारा श्रमदान या योगदान । विकास कार्यों के तौर पर की गई गतिविधियां समुदाय की भागीदारी बढ़ाने के सुलभ उपाय हैं । यह भागीदारी नगद, सामग्री, या फिर श्रम के रूप में की जा सकती है । श्रमदान गांव के विकास के लिए लोगों का योगदान होता है, वे अपने ही गांव में मिलकर एक साथ काम करते हैं, और तब उन्हें अपनी रोज़मरा की समान मुश्किलों के बारे में चर्चा करने का अवसर मिलता है, जिससे आपसी एकता की भावना बढ़ती है । सबसे ज़्यादा महत्त्व इस बात का है कि यूं मिलकर श्रमदान करके गांव के लोग ख़ुद अपनी संपत्ति तैयार कर रहे होते हैं, जिसपर उनका स्वामित्व और अधिकार होता है, और एक तरह से अपने विकास की बागडोर वे अपने हाथों में लेते हैं ।

इसी सोच के चलते, संस्था के कार्यकर्ताओं ने गुलझिरी गांव में अपनी पहल के 6 महीने बाद, अप्रैल 2024 में मेड़ बंदी के लिए श्रमदान कार्यक्रम का आयोजन किया । सुबह 7 बजे से शुरू होने वाले इस कार्यक्रम में गांव के लगभग 350 लोगों ने भाग लिया । काम शुरू करने से पहले ग्रामीणों ने ढोल नगाड़ों और नृत्य के साथ जश्न मनाया । संस्था से निखिलेश राठौड़ ने, जो भगवानपुरा में एस पी एस के काम का नेतृत्व करते हैं, सभी किसानों का स्वागत किया । कीर्ति केलदे और अनिकेत चंदेल ने संस्था के अन्य कार्यक्रमों के बारे में भी बताया, और वहां उपस्थित सभी लोगों का समर्थन मांगा ।

उस दिन गांव के लोगों और संस्था के कार्यकर्ताओं ने कुल मिलाकर 510 मीटर के पाले बनाए । इस पूरे कार्य की गणना की जाए, तो यह लगभग रु. 64,000 के बराबर का श्रम  हुआ । जहां एक ऐसा भी समय था कि लोगों को संस्था पर संदेह था, वहीं गांव के लोग एक साथ आए और एक ही दिन में अपने श्रम के रूप में रु. 64,000 का योगदान देकर संस्था में अपना भरोसा जताया । कई किसानों ने संस्था के लिए आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में भी इसी तरह के समर्थन का आश्वासन दिया ।

गुलझिरी गांव के सरपंच कैलाश बर्डे ने कहा कि उन्होंने पहले कभी किसी कार्यक्रम में समुदाय की इतनी बड़ी भागीदारी नहीं देखी । चाहा कि संस्था लगातार ऐसे ही काम करती रहे ताकि गांववालों का जीवन बेहतर हो सके । ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए वे सभी हमेशा तैयार रहेंगे । संस्था के कार्यकर्ताओं को भगवानपुरा तहसील के अन्य गांवों से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है ।

लेखन: अभिषेक चौहान

स्त्रोत: आरती शिँह और निखिलेश राठौड़

फोटोग्राफी: कीर्ति केलदे और विपिन पाल


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