महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले की पर्वत शृंखलाओं में स्थित है मेलघाट, “घाटों का मिलन”, जो पहाड़ियों, चट्टानों और खड़ी चढ़ाईयों से घिरा हुआ खंड है । यहां के धारणी नगर पंचायत से लगभग 20 कि. मी. दूर बसा है बिबामल गांव, जिसमें पिछले कई सालों से पानी की गंभीर समस्या हो रही थी। इस गांव में ग्राम पंचायत के माध्यम से पानी के लिए चार बोरवेल और तीन टंकी लगाई गई थीं, लेकिन चारों बोरवेल के ख़राब हो जाने की वजह से टंकियों में पानी भर पाना संभव नहीं था। गांववालों ने ग्राम पंचायत में बार-बार शिकायत और मिन्नतें कीं, उसके बाद भी बोरवेल ठीक नहीं करवाए गए। लोगों को घरेलू खपत के लिए गांव के किसी किसान के निजी कुंए से पानी लाना पड़ता था । कुंए में पानी बहुत नीचा होने के कारण महिलाएं बाल्टी की रस्सी खींचते-खींचते थक जाती थीं । और क्योंकि यह कुंआ गांव से आधे कि. मी. दूर की एक टेकड़ी पर स्थित है, महिलाओं को पानी से भरे गुंडे (घड़े) सर पर रखकर चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी।इसके बावजूद, जितना पानी वे ला पातीं वह घर की ज़रूरतों के लिए पर्याप्त नहीं होता था। पानी की इस समस्या को लेकर गांववाले बहुत परेशान हो गए थे ।
हिस्सेदारी सभा में ‘हम सब एक हैं’ फिल्म की स्क्रीनिंग
गांव में पिछले डेढ़ साल से समाज प्रगति सहयोग (एसपीएस) के पात्रता, स्वास्थ एवं पोषण कार्यक्रम के कार्यकर्ता अरविंद चतुर स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के साथ हिस्सेदारी सभा[1] की बैठकें आयोजित करते आए हैं। ऐसी ही एक सभा के दौरान एसपीएस कम्युनिटी मीडिया द्वारा बनाई गई फ़िल्म ‘हम सब एक हैं’ दिखाई गई।
इस फ़िल्म में दर्शाया गया है कि कैसे तुमड़ीखेड़ा गांव में नियमित रूप से राशन न मिलने पर महिलाओं ने हिस्सेदारी सभा में इसपर चर्चा की, लेकिन जब उन्होंने बड़ी संख्या में राशन दुकानदार का सामना करके उसपर सामूहिक दबाव डाला तब अगले ही महीने से नियमित राशन वितरण होने लगा । यह फ़िल्म महिलाओं को जागरूक करने और गांव की समस्याओं के समाधान में उनकी भागीदारी को प्रेरित करने का काम करती है । फ़िल्म स्क्रीनिंग के बाद अरविंद ने गांव की समस्याओं के बारे में चर्चा की, जिसके दौरान उपस्थित सदस्यों ने बताया कि पानी की समस्या के कारण महिलाएं घर के काम समय पर नहीं कर पाती हैं, जिससे उनकी दिहाड़ी मजदूरी भी अक्सर छूट जाती है । पानी भरने में ही उनका सारा दिन निकल जाता है ।
महिलाएं सरपंच से मिलने किराये की गाड़ी से जाते हुए
बिबामल गांव की पानी की यह समस्या इस से पहले भी हिस्सेदारी सभा में सामने आई थी। लेकिन महिलाओं को आगे चलकर होने वाली ग्राम सभा की मीटिंग में लोगों के सामने और ग्राम पंचायत के सामने बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी । ‘हम सब एक हैं’ देखने के बाद उनमें नए सिरे से हिम्मत आई, और उन्होंने निर्णय लिया कि हम भी अपने गांव के लिए पानी लाएंगे–सब एकजुट होकर सरपंच को लिखित में पानी की समस्या पर आवेदन देंगे । सरपंच का गांव बिबामल से 5 कि.मी. दूर होने के कारण महिलाओं ने योजना बनाई कि वे पैसे इकठ्ठा करके एक गाड़ी कर लेंगीं और सरपंच के घर जाकर आवेदन देंगीं।
सरपंच के घर पानी की समस्या पर बात करते हुए
फिर मई 2024 में वह दिन आया, जब लगभग 25 से 30 महिलाएं एकजुट होकर सरपंच के घर पहुंचगईं। सरपंच को उनके आने की जानकारी पहले ही मिल गई थी, इसलिए वह भागकर बिबामल चलागया था।जब महिलाएं उसके घर पहुंची तो घर के लोगों ने बताया कि वे आपके ही गांव गए हैं । महिलाओं ने फ़ोन लगाकर सरपंच को वापस बुलाया। इतनी महिलाओं को देखकर वह घबरा गया और उसके पसीने छूट गए। महिलाओं ने अपना लिखित आवेदन उसे दिया और समस्या निवारण के लिए समय सीमा तय करने की मांग रखी।
महिलाएं सरपंच को लिखित में पानी की समस्या पर आवेदन देते हुए
सरपंच ने महिलाओं को आश्वासन दिया कि चार दिन में उनके गांव में पानी की व्यवस्था हो जाएगी । इस दौरान, सरपंच ने चारों बोरवेल सुधरवाए और 5 एच.पी. की मोटर बदलकर सब में 7 एच.पी. की मोटर लगवाई। अब पानी की टंकियां भरने लगीं, और महिलाओं के चेहरों पर मुस्कानें छाने लगीं। यूं उनके प्रयासों से बिबामल गांव की पानी की समस्या दूर हुई।
आख़िरकार पानी की टंकियाँ फिर से पानी से भरने लगीं
[1]ये गांव के स्वयं सहायता समूह के सदस्यों द्वारा बुलाई गई मीटिंग होती हैं, जिनमें गांव से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जाती है, जैसे सबके लिए पीने का पानी उपलब्ध होना, राशन की दुकान, शौचालय, पेन्शन योजनाएं, प्रधान मंत्री आवास योजना, इत्यादि।
लेखन: बालगीता भिलावेकर
स्त्रोत: अरविंद चतुर
फोटोग्राफी: राहुल कास्देकर