मेलघाट लोकेशन में पात्रता स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम के माध्यम से अलग-अलग गाँव की आँगनवाड़ी में कुपोषण पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कुल 26 प्रशिक्षण शिविर आयोजित हो चुके है और आगे भी चलते रहेंगे। आज दिनांक- 09/06/2023 मेलघाट लोकेशन के रतनापुर गाँव में हुए एक प्रशिक्षण की फिल्ड रिर्पोट हम आपके साथ साझा कर रहे है जो कि गाँव की आँगनवाड़ी केन्द्र में रखा गया था, जिसमें प्रशिक्षक श्रवण कर्मा और महेन्द्र लावेकर भइया ने किया था। स्वास्थ्य एंव पोषण कार्यक्रम के गणेश धुर्वे भइया ने गाँव में प्रशिक्षण आयेजित किया था, जिसमें 25 से 30 लोग शामिल हुए। कुपोषण क्या है उस पर चर्चा हुई और यह बताया गया की कुपोषण बीमारी नही एक स्थिति है जो लम्बे समय से चली आ रही है।
कुपोषण के प्रकार-
- सुखा कुपोषण- सुखा कुपोषण यानी बच्चे को देख के पहचानना अगर बहुत दुबला-पतला दिखता है तो इसे सुखा कुपोषण कहते है।
- मोटा कुपोषण- मोटा कुपोषण यानी की सेहत और शरीर तो अच्छा दिखता है फिर भी वजन कम है। इसे जानना है तो उंगली से पैर के पंजे को दबाकर रखे थोड़ी देर में पैर पर गड्डा हो जायेगा और अगर यह गड्डा धीरे-धीरे भरे तो कुपोषण माना जाता है।
कुपोषण को पहचानने का तरिका-
- उम्र के हिसाब से वजन का ना बढ़ना।
- उम्र के हिसाब से उॅचाई का न बड़ना।
- दंड घेर से माप के पता करना।
- पहला बताया नुस्खा मोटा कुपोषण बच्चे के उल्टे पैर के पंजे को अंगुठे से दबाकर देखना ।
- सुनहरे बाल अथवा सर का बड़ा होना।
कुपोषण के मुख्य कारण-
- सामाजिक- लड़की की शादी कम उम्र में कर देना। 18 साल से पहले शादी होने पर लड़की का शरीर बच्चा करने के लिए परिपूर्ण नही होता है इसलिए बच्चे कुपोषित जन्म लेते है।
- आर्थिक- आर्थिक तंगी यानी निर्धन होना, पोष्टिक आहार का ना मिलना खेतो में या बाहर जाकर काम करने के कारण गर्भवती महिलाओं को टीके नही लगना भी कुपोषण का कारण है।
- तत्कालीन- तत्कालीन मतलब संडास अथवा उल्टी होने से कमजोर शरीर भी कुपोषण कहलाता है।
पोषण पूरक आहार का सेवन और सही समय पर टीके लगवाने से हम कुपोषण से बच सकते है और अपने बच्चे को भी बचा सकते है। प्रशिक्षण में आँगनवाड़ी से सविता जाम्बेकर दीदी, स्वाष्थ्य एंव पोषण कार्यक्रम से श्रवण कर्मा, महेन्द्र लावेकर, गणेष धुर्वे और कृषि कार्यक्रम से राजेन्द्र जाम्बेकर भइया शामिल हुए।