Issue 44 – एनपीएम के माध्यम से सफलता: कमला बाई की भिंडी की खेती


पुंजापुरा लोकेशन के ग्राम लक्ष्मी नगर की निवासी कमला बाई पति धनसिंह “आशा किसान प्रगति समूह” से जुड़ी हुई हैं। उनके पास 5 बीघा जमीन है और परिवार में चार सदस्य हैं। खेती, मजदूरी करके इनकी वार्षिक आय मात्र 30,000 रु. ही थी।

एक दिन एक्सपोजर विजिट के लिए समाज प्रगति सहयोग के कृषि कार्यक्रम के कार्यकर्ता मुकेश किराड़े सभी समूह के किसानों को लक्ष्मी नगर गाँव की राधाबाई के खेत में विजिट के लिए लेके जाते हैं।

राधा बाई “मीरा किसान प्रगति समूह” की सदस्य हैं। उनके खेत में भिंडी, गिलकी की फसल देखकर, कमलाबाई बहुत आकर्षित होती हैं और राधाबाई से खेती के तरीके पूछती हैं। राधाबाई एन.पी.एम. खेती की प्रक्रिया बताते हुए कहती हैं कि सब्जी की खेती में फायदा रहता है, 40 से 50 रुपये किलो भिंडी और गिलकी का मिल जाता है। ये सुनकर कमलाबाई और उनके पति ने निर्णय लिया कि वे भी अपने खेत में सब्जी उगायेंगे। घर में बोरवेल और नदी का पानी पर्याप्त है, ये सोचकर बारिश की फसल मक्का कटाई के बाद, दो बीघा जमीन में उन्होंने भिंडी, गिलकी, पालक और कोथमीर उगाईं। भिंडी को छोड़कर बाकी सब्जियां घर में खाने के लिए ही थोड़ी थोड़ी उगाईं। भिंडी ज्यादा मात्रा में बाजार में बेचने के लिए उगाई क्योंकि इसका भाव अच्छा मिलता है।

दीदी की सब्जी की फसल बहुत अच्छी आई पर भिंडी की फसल में कोकड़ा बीमारी लग गयी जिससे इनके पत्ते कड़क होने लगे और भिंडी की बड़ावटी में भी रुकावट आने लगी। यह देखकर एस.पी.एस. के मुकेश किराड़े भैया ने कमला दीदी को जैविक दवाई “पाँच पत्ती काढ़ा” और “नीम दवाई” डालने की सलाह देते हुए बताया कि ये टॉनिक का काम करती है। इनके छिड़काव से कोकड़या बीमारी दूर होगी, इल्ली भी हटेगी और कमजोर भिंडी में बड़ावटी होगी।

कमला दीदी के गाँव में उनके समूह की एक सदस्य, “बायो रिसोर्स सेंटर” बी.आर.सी. चलाती हैं, वे जैविक दवाई स्थानीय सामग्री से ही बनाकर गाँव के किसानों को बेचती हैं। कमला दीदी और धनसिंग भैया ने बी.आर.सी. से 10 लीटर “पाँच पत्ती काढ़ा” और 5 लीटर “नीमकाढ़ा” को 450 रु. में खरीदकर दोनों का भिंडी के खेत में मुकेश भैया की सलाह अनुसार छिड़काव किया। धीरे-धीरे भिंडी में से इल्ली बाहर हो गयी, नए हरे पत्ते निकलने लगे, भिंडी में बड़ावटी होने लगी।

दीदी के खेत की उपज में लागत कम लगी और भिंडी भी खूब सारी आई। कमला बाई और धनसिंग भैया बताते हैं कि अगर बाजार की रासायनिक दवाई लाकर छिड़कते तो एक बार में ही 500 से 600 रु. खर्च करने पड़ते। जैविक दवाई के छिड़काव से मंडी में भिंडी 40 रु. किलो बिकी और लगभग 150,000 रु. की आवक हुई साथ ही बिना रासायनिक दवाई की भिंडी घर में खाने में भी सही लगी।

मुकेश भैया बताते हैं कि समाज प्रगति सहयोग संस्था का कृषि कार्यक्रम “एन.पी.एन.” यानी कि बिना रासायनिक दवाई की खेती को बढ़ावा देने के लिए महिला किसानों को बी.आर.सी. केंद्र चलाने को प्रोत्साहित करता है ताकि सभी किसानों को जरूरत पड़ने पर जैविक दवाई आसानी से मिल पाए और बी.आर.सी. चलाने वाले किसान अपनी जीविका के लिए आमदनी पा सकें। अब तक एस.पी.एस. द्वारा 55 बी.आर.सी. केंद्र खुल चुके हैं।


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