Issue 50 – गांव के पशुओं के स्वास्थ्य के लिए महिलाएं बनीं “पशु-सखी”


खरगोन ज़िले के नगर परिषद भीकनगांव के आस-पास के (लगभग 15 से 20 कि.मी. की दूरी पर) गांवों में रहने वाली ​कुछ महिलाएं “पशु-सखी” कार्य करने के लिए तैयार हुई हैं ।

अगस्त 2023 में समाज प्रगति सहयोग के ‘पशुधन विकास कार्यक्रम’ के कार्यकर्ता अर्जुन मोरे प्रशिक्षण के लिए लखनऊ गोट ट्रस्ट गए थे । वहीं अपने इलाके में पशु-सखी बनाने का प्रस्ताव सामने आया, जिसके चलते उन्हें अपने आस-पास के ऐसे 10 गांवों का चयन करके, जिसमें एक गांव में कम-से-कम 250 से 300 बकरी पालक हों, ​हर गांव से 20 ऐसी महिला सदस्यों की सूची बनाने कहा गया ​जिन्हें पशु- चिकित्सा में प्रशिक्षण लेने की इच्छा हो ।

अर्जुन मोरे के लौटने और सारी सूचियां तैयार होने के बाद, अलग-अलग गावों के 20 सदस्यों में से 6 गांवों से 7 महिलाओं का चयन किया गया जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, यानी जिन्हें काम की ​अधिक ज़रूरत थी, और तय हुआ कि इन्हें पशु-सखी बनने के लिए पशु स्वास्थ्य और चिकित्सा का प्रशिक्षण दिया जाएगा ।

पशु-सखी चयन करने का मुख्य उद्देश्य था महिला सशक्तिकरण को बढ़ाना, उन्हें रोज़गार दिलाना, और साथ ही गांवों के जानवरों को समय पर इलाज मुहैया करवाना । समाज प्रगति सहयोग के पशुधन कार्यक्रम में हर 7 से 8 गावों में एक पेरावेट की व्यवस्था है, पर क़रीब 20 कि.मी. की दूरी के गावों को अकेले सम्भाल पाना पेरावेट के लिए मुश्किल हो जाता है ।​ इसीलिए यहां पशु-सखी ​योजना को लागू करने की पहल की गई ।

जिन महिलाओं को पशु-सखी बनने के लिए चुना गया, उनसे और उनके परिवार वालों से बात कर समझाया गया कि अगर बकरा-बकरी और पशुओं को कुछ भी समस्या हुई तो महिलाएं अपने-अपने गांव में इलाज करेंगी, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी मिलेगा।

यूं सबकी सहमति लेने के बाद उनका नाम लखनऊ गोट ट्रस्ट के प्रशांत सिंह, जो स्टेट कोर्डिनेटर हैं, और प्रशिक्षक धर्मेंद्र सिंह को भेजा गया, और उन दोनों ने आकर महिलाओं के लिए दिसम्बर में 5 दिन का पहला प्रशिक्षण रखा जिसमें डीवॉर्मिंग करने व दाना मिश्रण, मिनरल ब्रिक्स, लिवर टॉनिक, मसाला बोलस, नीम तेल, पशु चाट, पचपन प्रास, पचमोला आदि बनाने पर ट्रेनिंग दी गई, साथ ही महिलाओं को बकरी के रखरखाव और प्राथमिक इलाज करने के बारे में जानकारी दी गई।

प्रशिक्षण होने के बाद इन नई पशु-सखियों को “पशु किट” और अनेक प्रकार की उपयोगी हर्बल दवाइयां दी गईं । इसके बाद प्रशांत सिंह और धर्मेंद्र सिंह ने उन्हें अपने–अपने गांवों में फ़ील्ड प्रशिक्षण भी करवाया ।

बकरियों को दस्त लगने या बुख़ार आने पर कौनसी दवा देनी है, इस तरह के इलाज अब महिलाएं ख़ुद अपने घर, परिवार व मोहल्लों में करने लगी हैं । आगे वे बकरियों को वेक्सीनेशन देना भी सीखेंगी ।

लेखन: वर्षा रंसोरे

स्रोत: रबिंद्र कुमार बारीक

छायांकन: अनिल सोलंकी और सिकदार डावर


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