Issue 54 -मुर्गी शेड


निर्मदी कास्देकर मेलघाट, महाराष्ट्र, के धारणी शहर से 28 कि.मी. दूर गौवलंडोह गांव की रहने वाली हैं। उनके परिवार में कुल 6 सदस्य हैं – उनके पति, एक बेटा, बहु, और दो पोते। निर्मदी बाई घर के कार्य के साथ-साथ उनकी तीन एकड़ ज़मीन पर खेती करने में पति और बेटे को मदद करती हैं। समय के साथ जब महंगाई और ज़रूरतें बढ़ने लगीं, उन्होंने मुर्गीपालन करने का सोचा, जिससे परिवार के लिए कुछ अतिरिक्त पैसे जुटाए जा सकें।गांव में कई महिलाएं मुर्गीपालन करने लगी थीं। शुरु में निर्मदी बाई ने तीन-चार मुर्गियां खरीदीं, जिन्हें वे चरने के लिए बाहर छोड़ देती थीं। लेकिन मुर्गियों को चील-कौवे या कुत्ते-बिल्ली खा जाते थे, जिस वजह से उनको काफ़ी नुक़्सान झेलना पड़ रहा था।

एक दिन गांव की चौपाल में समाज प्रगति सहयोग (एस पी एस) कम्यूनिटी मीडिया द्वारा मोबाइल सिनेमा की प्रदर्शनी के तहत ‘घर की मुर्गी सोना बराबर’ नाम की फ़िल्म दिखाई गई। फ़िल्म में मुर्गियों की देखभाल के तरीक़े बताए गए थे, जैसे बीमारी से बचने के लिए टीकाकरण किया जाना, साथ ही उनके रहने के लिए मुर्गी शेड बनाना जहां उन्हें सुरक्षित रखा जा सके। फ़िल्म देखने आई गांव की मुर्गीपालन करने वाली अन्य महिलाओं के साथ निर्मदी कास्देकर भी वहां उपस्थित थीं, और शेड वाले सुझाव से वे बहुत प्रभावित हुईं।

फ़िल्म समाप्त होने पर पेरावेट रोहित पटेल ने एस पी एस के पशुधन कार्यक्रम, और इस कार्यक्रम द्वारा संचालित पशुधन समूहों के बारे में बताया, जहां सदस्यों को पशु चिकित्सा और अन्य तरह की सहायता मिलती है। समूह में जुड़ने के कई फ़ायदों की भी जानकारी दी। इतने फ़ायदे होते हैं, यह सोचकर निर्मदी बाई ने रोहित पटेल के सामने पशुधन कार्यक्रम के समूह से जुड़ने की अपनी भी इच्छा जताई । कुछ दिनों बाद ही वे ‘मां सरस्वती पशुधन समूह’ की सदस्या बन गईं।

गौवलंडोह गांव की 20 महिलाएं जो समूह से जुड़ी थीं, सभी मध्य प्रदेश के नीमखेडा में स्थित ‘बाबा आमटे लोक सशाक्तिकरण केंद्र’ ट्रेनिंग के लिए गईं, जहां उन्हें उन किसानों के घर विज़िट करवाए गए जहां एस पी एस की सहायता से मुर्गी शेड बनाए गए थे। गौवलंडोह गांव की महिलाओं ने ने देखा कि नीमखेडा की महिलाओं ने कैसे मुर्गियों के रहने के लिए अलग से मुर्गी शेड तैयार किए हैं और कैसे अपने घरों की ही तरह इन शेड को भी स्वच्छ रखती हैं। उनको समय पर दाना-पानी देना, और मुर्गियों में कुछ बीमारी आए तो समय पर इलाज कराना, इसका ख़याल रखती हैं। इस तरह मुर्गी पालन के ज़रिए महिलाएं कमाई कर रही हैं । गौवलंडोह गांव की महिलाएं इन बातों से काफ़ी प्रेरित हुईं, और निर्णय लिया कि अब से वे भी इसी तरह से मुर्गी पालन करेंगीं ।

केंद्र से गांव लौटने के बाद, समूह की बैठक के दौरान निर्मदी बाई ने रोहित से पूछा, “जिस तरह नीमखेडा के समूह की महिलाओं को मुर्गी शेड दिए गए, क्या हमें भी मिल सकते हैं ?” “हां, बिलकुल मिल सकते हैं। संस्था की तरफ़ से आपको हरी नेट, लोहे की जाली और मुर्गी के लिए दाना खाने और पानी पीने के बर्तन मिलेंगे, जिनकी कुल क़ीमत बाज़ार में रु. 4,100 तक पड़ती है। पर एस पी एस द्वारा ये आपको रु.1,200 में ही मिल जाएंगे। शेड में लगने वाला बाक़ी सामान, जैसे बल्ली, बास, और छत के लिए पन्नी आपको अपनी तरफ़ से लाने होंगे ।” निर्मदी बाई और अन्य महिलाओं जो बाबा आमटे लोक सशक्तिकरण केंद्र में ट्रेनिंग के लिए गई थीं, सभी ने मीटिंग में मुर्ग़ी शेड की डिमांड रखी, और सबने सामान मिलने में एस पी एस की सहायता के लिए हां कर दी। उन सबके नामों की लिस्ट पेरावेट ने ऑफ़िस में जमा करवा दी। सभी सदस्यों ने योगदान राशी के रूप में रु. 1,200 दिए, और लागत के बाक़ी रु. 2,900 एस पी एस द्वारा दिए गए।

जनवरी 2023 में पांच महिलाओं को मुर्गी शेड बनाने का सामान मिल गया, जिसमें शामिल थे 17 मीटर हरी नेट, 20 किलो लोहे की जाली जिसकी लम्बाई 23 मीटर और चौड़ाई 1.5 मीटर थी, और मुर्गियों के लिए बर्तन। सामान मिलने के बाद महिलाओं ने अपने खेतों में या घरों के बगल में मुर्गी शेड बांधकर तैयार कर लिए। शेड बन जाने से अब उनकी मुर्गियों को चील-कौवे या जानवरों से ख़तरा नहीं होता।

बहरहाल, इनमें से तीन महिलाऐं मुर्गी शेड का ध्यान नहीं रख पाईं । जिस प्रकार मुर्गी पालन करने की प्रकिया बताई गई थी, कि कैसे देखरेख करनी होती है, वैसा नहीं कर पाईं, इसलिए उनको मुर्गी शेड से लाभ नहीं मिल पाया। पर दो महिलाओं ने शेड का अच्छे से ध्यान रखा और मुर्गियों को समय पर चारा-पानी देती हैं, टीकाकरण करवाना भी नहीं भूलतीं ।इनमें से एक हैं निर्मदी कास्देकर। जब निर्मदी बाई ने पाया कि मुर्गियां तेज़ी से बढ़ने लगी हैं और सेहत भी अच्छी रह रही है, उन्होंने तय किया कि वे अंडे न बेचकर उन अंडों से चूज़ों को पैदा करके, बड़ा करके, उन्हें ही बेचा करेंगीं, क्योंकि यही ज़्यादा फ़ायदेमंद होगा। अब निर्मदी बाई की एक मुर्गी 600 से 700 रुपए में बिकती है।

निर्मदी कास्देकर को ट्रेनिंग में जिस तरह सिखाया गया था, वे उसी प्रकार मुर्गीपालन करती हैं, और अपने बच्चों की तरह अपनी मुर्गियों का ध्यान रखती हैं। पिछले एक साल में मुर्गियां बेचकर उन्होंने लगभग पांच-छ हज़ार रुपए की कमाई की। इस समय उनके पास लगभग 40 मुर्गा-मुर्गी और चूज़े हैं।

लेखन: शेख साजिद

स्त्रोत: विक्की नखाते

फोटोग्राफी: रोहित पटेल


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