Issue 56 – गर्मी से मिली बच्चों को राहत


बच्चों और गर्भवती महिलाओं में स्वास्थ्य और पोषण की वर्तमान स्थिति में सुधार लाने के लिए समाज प्रगति सहयोग संस्था के पात्रता, स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम के कार्यकर्ताओं के काम का एक पहलू है कि वे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर जाकर गांवों में बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य का उचित सर्वेक्षण करते रहें। हाल ही में ऐसे एक सर्वेक्षण के दौरान समाज प्रगति सहयोग संस्था के कन्नौद लोकेशन(कार्य-क्षेत्र) में 12 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे मिले। आम तौर पर पाया गया है कि बच्चों में कुपोषण के मुख्य कारण हैं महिलाओं की कम उम्र में शादी, उनके जल्दी-जल्दी बच्चे होना, मां के मजदूरी करने जाने पर नवजात शिशु को समय से मां का दूध न मिल पाना और थोड़े बड़े बच्चों के खान-पान को लेकर ठीक से ध्यान न दे पाना, और स्वछता की कमी से उत्पन्न होने वाली बीमारियां भी । यह सब जानते हुए कार्यक्रम के महेश गुर्जर ने बच्चों के माता-पिता से बात करके उनको पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) भेजने की सलाह दी,जहां 6 महीने से लेकर 5 साल तक के बच्चों को रखा जाता है।

शुरु में परिवार वाले मानने को तैयार नहीं थे। कुपोषण को लेकर लोगों में पूरी समझ नहीं है, और वे अक्सर इसकी सच्चाई को नकारने की कोशिश करते हैं, ऊपर से कई तरह के वहम आड़े आ जाते हैं जैसे बच्चे को नज़र लग जाने का डर । किसी का कहना था कि बच्चे के पिता भी बचपन में ऐसे ही दुबले और कमज़ोर दिखते थे, बाद में अपने-आप ठीक हो गए, तो किसी ने सही कहा कि हमारी मजदूरी छूट जाएगी।

महेश ने समझाया कि भारत सरकार की स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने वाले पोषण पुनर्वास केंद्र में गंभीर यानी तीव्र रूपसे कुपोषित बच्चों का 14 दिनों तक निशुल्क उपचार किया जाता है, और उन्हें पोषण-युक्त भोजन दिया जाता है। वहां बच्चों की माताओं के लिए भी रहने की और उत्तम भोजन की व्यवस्था है।उन्होंने बताया कि बच्चों की देखभाल के एवज उन्हें रु.120 प्रति दिन के हिसाब से 14 दिन की मजदूरी भी दी जाएगी ।यह प्रावधान इसीलिए है ताकि ग़रीब महिलाएं अपनी मजदूरी छोड़कर बच्चों के साथ पोषण पुनर्वास केंद्र जाकर रह सकें, जो कन्नौद गांवसे 40 – 45 कि. मी. की दूरी पर है और ज़्यादातर लोगों के लिए दूर पड़ता है। माता या फिर दादी-नानी, इतने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए किसी न किसी का केंद्र में साथ रहना ज़रूरी होगा । ऐसे किसी एक व्यक्ति को ही रहने की अनुमति है। दूसरे परिजन उन्हें देखने के लिए आ-जा सकेंगे । इन सब बातों को जानने और इन पर ग़ौर करने के बाद उन 12 बच्चों के घरवाले आख़िर उन्हें पोषण पुनर्वास केंद्र भेजने के लिए राज़ी हो गए ।

जब महेश गुर्जर बच्चों के प्रवेश से संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने पोषण पुनर्वास केंद्र गए,उन्होंने देखा कि एक 50 फ़ुट लम्बे हॉल में सभी बच्चों और महिलाओं के सोने के लिए पलंग लगेथे और वहीं पर रहने, खेलने, खाने का इन्तज़ाम था । लेकिन इस बड़े-से हॉल में सिर्फ़ दो छोटे-छोटे कूलर लगे हुए थे। वहां भर्ती बच्चों और साथ आए बड़ों के लिए हवा की पूर्ति नहीं हो पा रही थी।लगभग 45 डिग्री तापमान की गर्मी में सबके हाल बेहाल हो रहे थे। महेश ने अस्पताल के डॉक्टर से बात की, उनसे अनुरोध किया कि बच्चों के लिए और भी कूलर की व्यवस्था की जाए। वहां के लोगों से बस यही जवाब मिला कि सरकार द्वारा जो व्यवस्था होनी थी वह हो चुकी, फिर भी समस्या हो रही हो तो अब केंद्र वाले और क्या कर सकते हैं।

महेश ने कन्नौद प्रगति समिति की आगामी बैठक में,जिसमें समिति के सभी नेता और स्थानीय कार्यकर्ता भाग लेते हैं, इस मुद्दे को उठाने की ठानी। उन्होंने बैठक मेंउन12 अति कुपोषित बच्चों को केंद्र में जल्द-से-जल्द भर्ती करवाने की ज़रुरत पर ज़ोर दिया, साथ ही इसकी आवश्यकता का भी उल्लेख किया कि केंद्र में बच्चे आराम से रह पाएं । समिति लीडरों ने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए,तुरंत इस मुद्दे को गांव के महिला बचत समूहों की बैठकों में रखा। समूह के सदस्य बच्चों की मदद के लिए आगे आए, और दो समूहों ने कूलर की ख़रीद में योगदान करने की सहमति व्यक्त की।

कन्नौद गांव के सागर प्रगति समूह और शिवानी प्रगति समूह के सदस्य गांव के सबसे ग़रीब परिवारों में से हैं, जिन्होंने प्रतिमाह रु. 50 से समूह की बचत प्रणाली शुरू की थी। कई साल इन समूहों को कारगर ढंग से चलाने के बाद, अपनी जरूरतें पूरी करते हुए, आज इनके पास अतिरिक्त राशि एकत्रित हो गई है जिसका  कुछ हिस्सा वे सामाजिक उन्नति के कामों के लिए इस्तमाल करने लगे हैं। यूं मई 2024 की भीषण गर्मी से बच्चों को बचा पाने के लिए समिति लीडरों ने रु. 16000 में दो कूलर ख़रीदे और पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चों के लिए लगवा दिए।

उन 12 बच्चों के साथ, जिनमें से 7 लड़कियां थीं और 5 लड़के,उनकी माताएं भी 14 दिनों तक केंद्र में रहीं। वहां बच्चों के खानपान, स्वास्थ्य और स्वच्छता का नियमित रूप से ध्यान रखा गया, और मांओं को भी इन बातों का महत्त्व समझाया गया और प्रशिक्षण दिया गया । केंद्र में आई हुई हर मां को 14 दिनों की मजदूरी के हिसाब से रु. 1,680 मिले । वहां भर्ती होने के बाद उन 12 बच्चों के वज़न में बढ़ोतरी हुई, सेहत में सुधार आया। जब बच्चे घर लौटे, उनके परिवार वाले यह देख ख़ुश हुए कि अब वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं,और उन्होंने पात्रता, स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम की टीम का धन्यवाद किया।

लेखन: संगीता रंधावा 

स्त्रोत: महेश गुर्जर

फोटोग्राफी: पंकज पिपलोदिया


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