Issue 57 – कटहल महोत्सव


हाल ही में 13 जून को उदयनगर तहसील के ग्राम पंचायत पिपरी के सीता माता मन्दिर परिसर में एक-दिवसीय कटहल महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गयाl इसमें भाग लेने वालों में अधिकतर लोग स्वयं सहायता समूहों और हिस्सेदारी सभा के सदस्य थे l

समाज प्रगति सहयोग ( एसपीएस ) संस्था के उदयनगर कार्य-क्षेत्र के स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम द्वारा आयोजित इस महोत्सव का उद्देश्य था कटहल के कही तरीक़ों के सेवन और इसके पोषक मूल्यों के बारे में लोगों को जागरूक करना, क्योंकि कटहल एक बहुत ही पोष्टिक भोजन है, जिसमें सेब और केले से भी अधिक विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्निशियम होता है l कुपोषण के शिकार इस क्षेत्र में, जहां बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत क्षीण हो चुकी है, यह समस्या के समाधान का और एक उपाय है l

महोत्सव का संचालन उदयनगर के कार्यकर्ता बबिता कुशवाह, हंसराज राठोड़ और हरिओम बारवाल ने किया, जो लगातार कुपोषण से जूझने के लिए स्वस्थ भोजन के लाभ पर ज़ोर देते आए हैं l कार्यक्रम की टीम स्थानीय लोगों को मौसमी और स्थानीय उपज की चीज़ों के जरिए कुपोषण से निपटने के लिए प्रोत्साहित करती है l और क्योंकि कटहल अब इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, वे इसके उत्पादन व विकास पर ध्यान दे रहे हैं l

आज से लगभग 20 साल पहले, मालवा पठार के नीचे नर्मदा घाटी में स्थित बागली तहसील के उदयनगर क्षेत्र के कुछ गांवों में एसपीएस की मदद से फलदार पौधों का वितरण किया गया था, जिसमें कटहल भी एक था l वे पेड़ आज परिपक्क हो गए हैं,और आज कटहल की उपज अच्छी मात्रा में हो रही है lकिसानों के द्वारा बाजार और मंडी में कटहल को बेचा भी जाता है l लेकिन इसकी खपत सिर्फ़ कच्चे कटहल तक ही सीमित थी l आम तौर पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि कटहल का सेवन फल के रूप में भी किया जा सकता है और यहां तक कि इसके बीजों का बहुत अधिक पोषक मूल्य होता है lवास्तव देखा गया है कि कटहल पक जाने पर लोग उसे फेंक देते हैं,उपयोग में नहीं लेते l

कार्यक्रम के दौरान एसपीएस की कृषि टीम ने कटहल के पेड़ को उगाने के अनुभवों और कुशल प्रक्रियाओं को भी साझा किया। विवेक कुमार ने पौधा लगाने से पहले मटका सिंचाई के लिए मटका लगाने की प्रक्रिया के बारे में बताया। कटहल लगाने में कितना खर्च आएगा और इसके बाद आमदनी क्या होगी, इसकी जानकारी दी। एसपीएस एग्रीकल्चर के सीनियर मितान महेंद्र भंवर ने अपना अनुभव साझा किया कि कैसे उन्होंने भी 20 साल पहले कटहल के पेड़ लगाए थे जब एसपीएस ने पौधे बांटे थे। आज उनके परिवार को 15 पेड़ों से 12 क्विंटल फल की सालाना फसल मिलती है। उन्होंने पेड़ों की देखभाल और आवश्यक पानी की मात्रा की जानकारी साझा की।

एसपीएस के मीडिया कार्यक्रम की प्रमुख पिंकी ब्रह्मा चौधरी जो असम से आती हैं, लेखा विभाग की मुख्य सिनी जालीजो केरला से हैं, और विवेक कुमारजो बिहार के हैं (ये सब ऐसे राज्य हैं जहाँ कटहल रोजमर्रा के आहार का हिस्सा है), इन तीनों ने कटहल की गुणवत्ता और इसके कितने प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, इसकी जानकारी दी lयह भी दिखाया कि पके हुए कटहल को कैसे काटा जाना चाहिए l हाथों पर तेल मला गया(सोयाबीन या सरसों का तेल या कोई भी खाद्य या मीठा तेल ले सकते हैं) ताकि फल से निकलने वाले रस (सैप) से हाथ चिपचिपे न हों lचाकू पर भी तेल लगाया गया, फिर कटहल को एकतरफ़ से आधा काटकर छिलके और बीजों को अलग किया गया l मालूम हुआ कि पके कटहल का अचार भी डाला जाता है, इसके अलावा बीजों की भी ख़ासियत बताई गई कि कैसेइन्हें सुखाकर साल-भर खाया जा सकता है, सब्ज़ी बनाकर, खीर में डालकर,या मूंगफली की तरह सेक कर l यह जानकारी भी मिली कि कटहल के अपशिष्ट का उपयोग पशु चारे के रूप में  किया जाता है, जो न केवल बहुत पौष्टिक होता है बल्कि मवेशियों और बकरियों को बहुत पसंद भी आता है lएकत्रित लोगों के लिए कटहल के चिप्स और बिज के पकवान के साथ पके कटहल के फल को  परोसा गया l

कटहल खाने के बाद सभी ने कहा कि पकी हुई कटहल पहली बार खाकर बहुत ही स्वादिष्ट लगी l कहा कि इसका स्वाद तो आम जैसा लगता है- हमने पहली बार कटहल से बने इतने प्रकार के व्यंजनों के बारे में सुना और आखों से देखा- हम तो सिर्फ़ इसकी सब्जी तक ही सीमित थे, वह भी कच्चे कटहल की, पके कटहल में भी इतने सारे गुण होते हैं यह आज जाना l सिनी ने बताया कि इसके बीज के पाउडर से दवा भी बनाई जाती है जिसके कई फ़ायदे माने गए हैं, जैसे रोग-प्रतिरोधक क्षमता जैसे को बढ़ावा देना l

उदयनगर प्रगति समिति के सभी कार्यकर्ताओं की मदद से कटहल महोत्सव सफ़ल रहा lयहां के लोगों ने अपने भोजन में कटहल के विभिन्न पकवानों का स्वाद लेना सीख लिया है lकटहल महोत्सव का यह दूसरा वर्ष है – उदयनगर की टीम ने पिछले साल इसी महोत्सव का आयोजन देवनालिया गांव में किया था l

लेखन: वर्षा रंसोरे 

स्त्रोत: हंसराज राठौड़

फोटोग्राफी: अभिषेक चौहान

अनुवाद ( हिंदी से अंग्रेजी) : स्मृति नेवटिया

मार्गदर्शक: पिंकी ब्रह्मा चौधरी


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