मध्यप्रदेश के देवास जिले की बागली तहसील के अंतर्गत चारबर्डी गांव में प्राथमिक रिसर्च के बाद पता चला कि गाँव में प्रत्येक परिवार सीमांत किसानों का है। जिनकी भूमि का एक छोटा भाग केवल पुरानी पद्धति पशुपालन के साथ फसलें {गेहूं, मक्का, सोयाबीन, आदि } के उत्पादन पर ही केंद्रित है। मवेशी के खान-पान में काफी कमी है, सूखा चारा ही खिलाते है, हरे चारे की अतिरिक्त कमाई है। इसके अलावा, कृषि श्रम पर आधारित है और जहां पर कड़ी मेहनत के बावजूद उत्पादन पर्याप्त नहीं होता है।
पलायन पूरे क्षेत्र में एक मुद्दा है, रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। जहां वे पूरी ग्रामीण आजीविका प्रणाली से ही वंचित हो गए हैं। विकास कार्यक्रमों की मांग की जरुरत हैं जो ग्रामीण आजीविका के लिए बुनियादी और आवश्यक हैं। जरूरत है लोगों के लिए आय का एक वैकल्पिक स्रोत बनाने की, जहां लोग गांव में ही आजीविका का आधार बना सकें। एस.बी.आई. फ़ेलोशिप कार्यक्रम के तहत पायलट हस्तक्षेप के रूप में, मैं पशुधन पालन में सुधार लाकर आजीविका का एक स्थायी स्रोत बनाने का प्रयास कर रहा हूँ।
मैंने मुर्गी और बकरी का 10×7 वर्ग फुट का संयुक्त मुर्गी एवं बकरी शेड डिजाइन किया, जो दो मंजिल का घर है। इसमें ऊपरी मंजिल बकरी के लिए है और निचली मंजिल मुर्गे के लिए है, इसमें एक साथ देशी मुर्गी और बकरी पालन होगा। बकरी का मल-मूत्र नीचे गिरेगा और फिर कीट पतंगे पैदा होंगे, जिनका उपयोग मुर्गी के चारे के रूप में किया जाएगा। इसके बाद मुर्गी और बकरी के कूड़े और मूत्र के कचरे का उपयोग फसलों और नेपियर घास के खेत में जैविक खाद के रूप में किया जाएगा, फिर नेपियर घास का उपयोग बकरी के लिए हरे चारे के रूप में होगा। यह अभ्यास जैव विविधता की पारिस्थितिक श्रृंखला बनाता है, पशु एवं चारा अपशिष्ट के लाभदायक उपयोग के माध्यम से पशुधन खेती और फसलों की खेती दोनों की क्षमता बढ़ा सकते है।
परियोजना का परिणामः-
मैंने अब तक तीन संयुक्त मुर्गी एवं बकरी शेड एस.बी.आई फ़ाउंडेशन के आर्थिक सहयोग से बनाए है। मेरे पायलट हस्तक्षेप को पूरा करने के बाद, गांव के तीन युवा अपने अन्य कृषि कार्यों के साथ मुर्गी और बकरी का एक संयुक्त मुर्गी एवं बकरी शेड शुरू करने के लिए प्रेरित भी हुए। दिलचस्प बात यह है कि तीनों में से दो युवक शहर में प्राइवेट नौकरी छोड़कर गांव आ गये। वे चारबड गांव में मेरे काम से प्रभावित हैं, उन्होंने पहले से ही अपने स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री की मदद से शेड बनाने का काम शुरू कर दिया है। मुख्य उद्देश्य उन्हें कचरे का उपयोग सीखाना और स्थानीय पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय सामग्रियों को बढ़ावा देना है। बकरी और मुर्गी दोनों का संयुक्त शेड एक पर्यावरण अनुकूल घर बनाने कीकला, मेरे समुदाय, असम की मिसिं जनजाति की पारंपरिक बाढ़ प्रतिरोधी वास्तुकला से प्रेरित है, जिसे मिसिं भाषा में “कारे ओकुम” और असमिया में “चांग घर” कहा जाता है।
यह नीचे से बाढ़ के पानी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए एक अभिनव वास्तुकला डिजाइन है क्योंकि यह बांस के खंभों द्वारा समर्थित एक दो मंजिला उंचा मंच है। असम के बाढ़ प्रवण क्षेत्र में निचले हिस्से का उपयोग आवास के रूप में नहीं किया जाता है। यहां, हमने निचली मंजिल का उपयोग मुग शेड के रूप में किया है। मैं असम के हाशिए पर रहने वाले समुदाय से हू, मैं मध्य प्रदेश तक {समाज प्रगति सहयोग} में एस.बी.आई यूथ फॉर इंडिया फेलो के रूप में आया हूँ।