महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के धारणी तहसील में स्थित नांदुरीगांव पहाड़ों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। नांदुरी में लोहार, गोलान, बलाई, कोरकू और गोंड जैसे आदिवासी या अन्य पिछड़े समुदायों के 290 परिवार निवास करते हैं, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 1200 है। यहां के लोग दिहाड़ी मजदूरी और पूर्वजों से मिली दो से तीन एकड़ भूमि पर खेती कर जीवन यापन करते हैं। 2001 से पहले सिंचाई के लिए यहां के किसान नदियों, कुएं और बारिश के पानी पर निर्भर थे, जिससे वे खरीफ़ फ़सल उगा पाते थे, और कुछ किसानों के पास बेहतर जल सुविधा होने से वे रबी की फ़सल भी उगा लेते थे। लेकिन अधिकांश किसानों के पास जल सुविधा न होने की वजह से वे आजीविका की तलाश में बाहर पलायन कर जाते थे।
नहर का सर्वेक्षण करते हुए किसान और संस्था के कार्यकर्ता
इन समस्याओं के कारण सिंचाई और जल प्रबंधन सरकारी विभाग के लघु पाटबंधारे प्रभाग के कार्यकर्ताओं ने एक दिन गांव में सर्वेक्षण किया, और पाया कि यहां एक मिट्टी के बांध का निर्माण किया जा सकता है, जिससे लगभग 700 एकड़ क्षेत्र की सिंचाई की जा सकेगी।
2002 में इस बांध का निर्माण-कार्य शुरू हुआ। बांध से खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नहरें बनाई गईं । गांव के लगभग 250 लोगों को रोज़गार मिला, और काम पूरा होने में लगभग चार वर्ष लगे । बांध से पर्याप्त पानी पाकर किसानों ने खरीफ़ और रबी की दो मुख्य फ़सलों के अलावा इनके बीच आने वाले ज़ैद मौसम में एक तीसरी फ़सल भी उगानी शुरू कर दी, जिससे पलायन के लिए मजबूर किसान भी अब गांव में रहकर खेती के माध्यम से अपना जीवन यापन करने में कामयाब रहने लगे।
पर समय के साथ सिंचाई के लिए तैयार की गईं नहरों से पानी रिसाव (लीकेज) की समस्या उत्पन्न होने लगी, जिससे किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था । जहां बांध के पास के किसानों को पानी मिल रहा था, वहीं दूर के खेतों में पानी नहीं पहुंच पा रहा था। पानी के रिसाव से कुछ खेतों में दलदल होने लगा, जिससे फ़सलें ख़राब होने लगीं। किसानों ने सिंचाई विभाग को इस समस्या के बारे में कई बार निवेदन भी दिए, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया ।
सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत 260 कार्यों में से एक है ‘सहभागी सिंचाई प्रबंधन’(PIM), जिसका उद्देश्य है किसानों की भागीदारी के माध्यम से बेहतर सिंचाई प्रबंधन और पानी के समान वितरण को सुनिश्चित करना, व कोशिश करना कि ज़्यादा से ज़्यादा खेतों को पानी मिले और कृषि उत्पादकता बढ़ सके। हालांकि सरकार और अधिकारियों ने इस कार्य को अनदेखा कर रखा था, समाज प्रगति सहयोग (एसपीएस) संस्था धारणी तहसील में सहभागी सिंचाई प्रबंधन पर काम कर रही है।
बिरसा मुंडा जल समूह मीटिंग
मुख्य रूप से, सहभागी सिंचाई प्रबंधन का काम है किसानों को अपनी सिंचाई प्रणाली को व्यवस्थित करने के लिए प्रेरित करना, जिसके लिए उनके साथ बहुत क़रीबी बातचीत की आवश्यकता होती है। नंदूरीगांव के किसानों के साथ ऐसी बातचीत के दौरान ही एसपीएस सहभागी सिंचाई प्रबंधन टीम को वहां के नहर के रिसाव की समस्या के बारे में पता चला। तब संस्था के कार्यकर्ता धर्मेंद्र गहलोद, देवेंद्र राजोरिया, नरेंद्र जावरकर और राजू जावरकर ने किसानों के साथ मिलकर नहर का निरीक्षण किया और फिर तीन जल समूह बनाए, जिनके सदस्यों को सिंचाई क्षेत्र में आने वाले पानी के उपयोगकर्ताओं में से चुना गया , ताकि वे प्रेरित हों कि आपस में चर्चा करें और स्वयं सिंचाई से जुड़ी समस्याओं के समाधान खोजें: ये थे बिरसा मुंडा जल समूह,ओम गणेश जल समूह और जय महाकाली जल समूह। शुरू में एसपीएस सहभागी सिंचाई प्रबंधन टीम द्वारा संचालित इनकी बैठकों के दौरान सदस्यों ने रिसाव के कारण लगातार सामने आ रही समस्याओं पर चर्चा की, तथा सरकारी विभागों से बार-बार की गई अपील पर कोई प्रतिक्रिया न मिलने के मुद्दे को उठाया ।
इस पूरी स्थिति को देखते हुए, सदस्यों ने निष्कर्ष निकाला कि सरकार पर निर्भर रहने से कुछ नहीं होगा और उन्हें इस मुद्दे को स्वयं अपने हाथों में लेना होगा। निर्णय लिया गया कि नहरों की मरम्मत ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है। जल प्रवाह की सीमा और मिट्टी के प्रकार को देखते हुए, सहभागी सिंचाई प्रबंधन टीम ने सुझाव दिया कि मिट्टी की नहरों की जगह सीमेंट की नहरें बेहतर होंगी, अधिक स्थायी रहेंगी। इससे दलदल की परेशानी से छुटकारा मिलेगा। किसानों ने लागत को लेकर चिंता जताई, लेकिन सहभागी सिंचाई प्रबंधन टीम ने आश्वासन दिया कि इस कार्य में संस्था आपकी मदद करेगी, आपको सिर्फ़ खेत के मेड़ (धुरे) की ज़मीन पर सीमेंट की नहर बनाने के लिए जगह देनी होगी और कुछ योगदान राशी भी देनी होगी।
हाफ राउंड पाइप पर सीमेंट का मसाला लगाते हुए
ज़मीन और पैसे का सुनकर कई किसानों ने आशंका जताई कि यदि इस कार्य से समस्या का समाधान नहीं हुआ तो वे अपना पैसा औ रज़मीन दोनों खो देंगे। तब सहभागी सिंचाई प्रबंधन टीम ने उन्हें अपनी इस परियोजना वाले अन्य गांवों में एक एक्सपोजर दौरे पर ले जाने का निर्णय लिया।संस्था की तरफ़ से नंदूरीगांव के जल समूहों से 10 महिलाओं और 20 पुरुषों को मध्य प्रदेश में एसपीएस के पुराने कार्यस्थल पर क्षेत्र-भेंट के लिए ले जाया गया, जहां PIM के माध्यम से किसान अपनी खेती में सुधार करने में सक्षम हुए हैं । महाराष्ट्र के किसानों ने देखा कि इन किसानों ने सीमेंट की नहरें बनाई हैं,और कुछ-कुछ दूरी पर चार से छह इंच के पाइप लगा रखे हैं जिनके ज़रिए वे पानी को नियंत्रित करते हैं व अपने खेतों तक पहुंचाते हैं। जब उनकी अपनी सिंचाई पूरी हो जाती है,वे पानी के प्रवाह को कपड़े के टुकड़े से बंद कर देते हैं ताकि दूसरे किसान को भरपूर मात्रा में पानी मिल सके। यह सब देखकर नांदुरीगांव के किसानों का मनोबल बढ़ गया।
वापस आकर सभी ने सीमेंट की नहर बनाने और इसके लिए योगदान देने की सहमति व्यक्त की। लेकिन बैठक में चर्चा के दौरान सदस्यों के ध्यान में आया कि ज़्यादातर किसानों के खेतों में काली मिट्टी है, और काली मिट्टी की उच्चजल धारण क्षमता के कारण सीमेंट से बनी नहर ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगी ।जब लोग कंक्रीट नहरों की दीवारों पर चलेंगे, काली मिट्टी कीअधिक नमी के कारण मिट्टी दब जाएगी और नहर टूट जाएंगे। इसीलिए फिर यह तय हुआ कि सीमेंट की नहर बनाने की जगह रेडीमेड सीमेंट (प्री-फ़ैब्रिकेटेड सिलिंड्रिकल) पाइप लगाना बेहतर रहेगा। और यह भी, कि जहां-जहां हाफ़ राउंड पाइप लगाए जाएंगे, उनको सीमेंट घोल द्वारा स्थापना में सहायता दी जाएगी जिससे पाइप और मज़बूत रहें ।
मेड पर पाइप बिछाते हुए
नकदी के बदले में श्रम के साथ योगदान
तदनुसार बिरसा मुंडा जल समूह के साथ काम शुरु हुआ, जिसमें 12 किसानों के खेत शामिल थे। पाइप की दुकान से एक कोटेशन लिया गया जिसे अगली समूह बैठक में प्रस्तुत किया गया। कुल लागत लगभग 8 से 9 लाख रुपये के बीच आर ही थी, जिसमें 50 फ़ुल राउंड पाइप, 200 हाफ़ राउंड पाइप, साथ ही मिस्त्री और मजदूर केखर्चभी शामिल थे। सभी ने राशी के बजाए श्रम के माध्यम से योगदान करने का निर्णय लिया।
संस्था के कार्यकर्ता और समूह के कुछ सदस्य पाइप का चयन और ख़रीदी करने चांदुर बाज़ार गए। मई 2023 से काम शुरू किया गया, लेकिन मानसून के मौसम में इसे रोकना पड़ा क्योंकि किसान अपने कृषि कार्य में व्यस्त हो गए थे। इसी बीच विभिन्न त्योहार भी पड़े, और यूं काम पूरा होने में साल-भर लग गया।
जमीन में पाइप डालते हुए
पक्की नहर तैयार
अप्रैल 2024 में संस्था और किसानों के सहयोग से काम सम्पूर्ण हुआ। लगभग 8.5 लाख रुपए खर्च हुए– संस्था द्वारा 8 लाख और किसानों द्वारा श्रम के माध्यम से 50 हज़ार। 12किसानों को खेतों में दलदल की समस्या से राहत मिली, और पानी की भरपूर उपलब्धता से फ़सल उत्पादन मेंभी वृद्धि हुई। किसानों ने संस्था और उसके कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया। हालांकि कुछ किसानों को अब भी रिसाव की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी सिंचाई प्रभावित हो रही है, और कुछ किसान अब भी दलदल से होने वाली मुसीबतों से जूझ रहे हैं। एसपीएस अब इस PIM कार्यक्रम को सरकार की मनरेगा योजना से जोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि सभी किसानों को इसका लाभ मिल सके।
लेखन: शेख साजिद
स्त्रोत: राजू जावरकर
फोटोग्राफी: राजू जावरकर, गजानन मोघे