Issue 63 – महिलाओं की दृढ़ता से गांव में नल जल योजना[1] स्थापित हुई


सतवास तहसील की सिन्द्राणी ग्राम पंचायत में स्थित उन्हेल गांव लगभग 200 घरों की बस्ती है। रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए पानी की पूर्ति के लिए गांव में तीन हैंडपंप थे, और एक सरकारी बोरवेल। लेकिन गर्मी के मौसम में दो हैंडपंप पूरी तरह सूख जाते थे, और एक जो चालू रहता था उसमें पानी रुक-रुक कर आता था। सरकारी बोरेवेल की मोटर तो न जाने कितने दिनों से ख़राब पड़ी हुई थी।

गांव में पानी की समस्या से अक्सर महिलाओं को ही जूझना पड़ता है क्योंकि पानी भरने का काम उन्हीं को करना पड़ता है। हैंडपंप पर काफ़ी लोगों की भीड़ लगती है, और कुछ समय बाद पानी बहुत कम हो जाता है, क्योंकि भू-जल के बहाव से पानी के फिर जमा हो पाने में समय लगता है। इस स्थिति में जिन महिलाओं को अपने घर के कामों के व पीने के लिए पानी नहीं मिलता था, वे आसपास के खेतों में लगे बोरवेल से पानी लेने लगभग एक कि.मी. दूर जाती थीं। खेत पर बिजली हुई तो पानी मिल जाता था, अगर बिजली नदारद तो खाली बर्तनों के साथ वापस आना पड़ता था। गांव के संपन्न लोग किसान के कुंए से छोटे पाइप की लाइन बिछाकर अपने घर तक पानी ले आते थे। पानी के लिए खेत मालिक को महीने के 60 रुपए भी देने पड़ते थे। लेकिन ग़रीब परिवार खेत से अपने घर तक पाइपलाइन बिछाने का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे।

नल जल योजना के माध्यम से घर तक पानी

इस समस्या के समाधान के लिए गांव के स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्यों ने पहल की। उन्होंने हिस्सेदारी सभा[2] में अपने गांव की पानी की समस्या के बारे में समाज प्रगति सहयोग संस्था के कार्यकर्ता सुनील उपाध्याय के साथ चर्चा की, और उनके सुझाव से ग्राम पंचायत के लिए इस समस्या को लेकर आवेदन तैयार किया। हिस्सेदारी सभा के सदस्यों ने ग्राम पंचायत में जाकर सरपंच को यह आवेदन दिया, लेकिन कई दिनों के इंतज़ार के बाद भी उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

बैठक में सुनील उपाध्याय से पानी की समस्या पर महिलाओं ने की चर्चा

हिस्सेदारी सभा के सदस्यों द्वारा सरपंच और सचिव से बार-बार अनुरोध करने के बाद गांव के सरकारी बोरवेल की मोटर ठीक हो पाई। लेकिन यह भी समस्या का स्थायी हल नहीं बन पाया लगभग चार महीनों में मोटर फिर ख़राब हो गई। सरपंच के ज़रिए उसे वापस ठीक कराना बेहद मुश्किल काम था। गांव की महिलाओं ने ठाना कि इस समस्या का स्थायी हल निकालना ही पड़ेगा। हिस्सेदारी सभा में उन्होंने तय किया कि कब तक सरपंच या सचिव के पीछे चक्कर लगाते रहेंगे, ग्राम स्तर पर समस्या ठीक नहीं हो रही है तो वे इसके बारे में सीधे जनपद पंचायत कन्नौद में PHE[3] विभाग (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) के अधिकारियों से बात करेंगीं। हिस्सेदारी सभा और गांव की अन्य महिलाओं ने जनपद पंचायत कन्नौद जाने का फ़ैसला किया।

उन्हेल से कन्नौद 28 कि.मी. दूर है। गांव से कन्नौद जाने के लिए कोई बस नहीं चलती, तो महिलाएं ट्रेक्टर के लिए लोगों से बात करने लगीं। लेकिन ट्रेक्टर मालिकों ने उन्हें ट्रेक्टर देने से साफ़ इनकार कर दिया।महिलाओं ने दूसरे गांव से ट्रेक्टर बुलवाया, और यूं 18 महिलाएं जनपद पंचायत कन्नौद कार्यालय पहुंचीं।वहां वे जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) से मिलीं और उन्हें गांव की समस्या से अवगत कराया। सब सुनकर CEO साहब ने समस्या सुलझाने और तुरंत कार्यवाही करने का वादा किया।महिलाओं ने आवेदन की एक प्रति PHE दफ़्तर में भी जमा की। आने-जाने में 1000 रुपये का खर्च हुआ, जिसे महिलाओं ने ख़ुद मिलकर उठाया।

महिलाएं जनपद पंचायत कन्नौद में समस्या का आवेदन देने पहुंची

बातों ही बातों में जानकारी मिली कि महिलाओं को ट्रेक्टर देने के लिए सचिव ने ही गांव के लोगों को मना किया था। लोगों को सचिव ने सावधान किया था कि इन महिलाओं की मदद करोगे तो गांव में जो प्रधान मंत्री आवास योजना में पक्के घर बनाने के लिए पैसे मिलते हैं उसके लिए फिर पंचायत से कोई भी उम्मीद मत करना। और जब सचिव को PHE में दिए गए आवेदन की ख़बर लगी, उन्होंने संस्था के कार्यकर्ता सुनील को फ़ोन पर धमकी दी कि गांव में काम करना है या नहीं, मेरी शिकायत करने महिलाओं को पढ़ा-लिखाकर वहां भेज दिया… अभद्र तरीक़े से और भी न जाने क्या-क्या बातें सुनाईं। सुनील ने सचिव से कहा कि उसने उन महिलाओं को कुछ नहीं सिखाया था। गांव में उनको समस्या हो रही थी जो सरपंच साहब से भी हल नहीं हुई, तो वे ख़ुद अपनी मर्ज़ी से गईं।

जनपद पंचायत कन्नौद अधिकारी गांव के लोगों से चर्चा करते हुए

कन्नौद में आवेदन देने के तीन-चार दिनों बाद जनपद पंचायत के अधिकारी गांव में पहुंचे। महिलाओं से पूरी समस्या समझने के बाद अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि जल्द ही पानी की समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन दो से तीन माह बीत जाने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ। लंबे इंतज़ार के बाद महिलाओं ने कन्नौद PHE विभाग के SDO (Sub-Divisional Officer, यानी उप-विभागीय अधिकारी) को फ़ोन लगाकर पूरी समस्या से अवगत कराया, साथ ही कितने समय से वे इस बारे में प्रयास कर रही थीं, यह भी बताया। महिलाओं को अब लग रहा था कि आख़िरकार इसका असर पड़ेगा।

टंकी निर्माण और गांव में नल जल योजना के लिए पाइप लाइन खुदाई

कुछ दिनों बाद पूरे गांव में घरों के सामने नलजल योजना के लिए खुदाई होनी शुरू हो गई, और घर-घर में नल कनेक्शन दिए गए। सरकारी ठेका होने के कारण काम धीमी गति से चलता था। जब भी काम रुक जाता, हिस्सेदारी सभा के सदस्य PHE विभाग में फ़ोन लगाने से नहीं कतरातीं। एक से दो महीनों में 4,000 लीटर क्षमता वाली पानी की टंकी का निर्माण हुआ और उसमें पानी भरने के लिए सरकारी बोरवेल में मोटर डाली गई और इस तरह गांव में नल जल योजना जारी हुई। महिलाओं ने मजदूरी और खेती के अपने काम की सुविधा के अनुसार पानी के लिए सुबह 9 बजे और शाम को 5 बजे का समय तय किया। गांव के किसी एक व्यक्ति को समय पर टंकी में पानी भरने के लिए मोटर चालू-बंद करने की जवाबदारी सौंप दी गई।

पानी की टंकी बनके तैयार

अब उन्हेल गांव की महिलाओं को पानी के लिए भरी गर्मी में अपने सिर पर वज़न नहीं ढोना पड़ता है।पूरे दो साल का लंबा संघर्ष रहा। इस बीच सरपंच और सचिव से भी इन महिलाओं का टकराव होता रहता था। हिस्सेदारी सभा के सदस्यों को एहसास हो गया था कि वे सरपंच और सचिव पर निर्भर नहीं रह सकतीं, तब भी उन्होंने अपनी समस्या हल करने की कोशिश नहीं छोड़ी, बस इस विश्वास से लगी रहीं कि एक न एक दिन सफ़लता ज़रूर मिलेगी।

[1] भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के साथ भागीदारी में अगस्त 2019 से लागू जल जीवन मिशन (JJM) का एक हिस्सा है ‘नल जल योजना’ या ‘हर घर जल’, जिसका कल्पित लक्ष्य है 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में नल से जल पहुंचाना।

[2] ये गांव के स्वयं सहायता समूह के सदस्यों द्वारा बुलाई गई मीटिंग होती हैं, जिनमें गांव से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जाती है, जैसे सबके लिए पीने का पानी उपलब्ध होना, राशन की दुकान, शौचालय, पेन्शन योजनाएं, प्रधान मंत्री आवास योजना, इत्यादि।

[3] PHE (Public Health Engineering Department या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) का काम है ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित एवं निर्धारित मात्रा में राज्य शासन की नीति एवं निर्देशों के अनुरूप पेयजल प्रदाय हेतु नलजल योजनाओं का सर्वेक्षण, हैंडपंप स्थापना एवं उनको ठीक करना, भू-जल पुनर्भरण एवं संवर्धन योजनाओं तथा रेनवाटर हार्वेस्टिंग योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ उनकी निगरानी करना।

लेखन: संदीप भाटी

स्त्रोत: सुनील उपाध्याय

फोटोग्राफी: सुदामा गुर्जर,धर्मेंद्र झीलोरिया

संपादन: स्मृति नेवटिया

मार्गदर्शक: पिंकी ब्रह्मा चौधरी


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