Issue 64 – गांवों में कुपोषण दर कम करने के लिए एस पी एस की एक विशेष पहल


समाज प्रगति सहयोग (एस पी एस) संस्था की पात्रता स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम टीम गांवों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य और पोषण की निगरानी के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करती है। उन्हें अक्सर आंगनवाड़ी केंद्रों पर जाकर दौरे करने होते हैं जिनमें तय मापदंडों के अनुसार बच्चों व महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच करनी होती है। देवास ज़िले की चारबर्डी पंचायत के कामथ गांव में हुई ऐसी ही एक विज़िट के दौरान कार्यकर्ता पवन परमार ने पाया कि दो साल का जिगर गंभीर रूप से कुपोषित था। उसकी उम्र को देखते हुए, स्वास्थ्य मापदंड के हिसाब से उसका वज़न 9 किलो 700 ग्राम तक होना चाहिए था, लेकिन था सिर्फ़ 7 किलो। पवन ने जिगर के माता-पिता को सलाह दी कि वे बच्चे को बागली में स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र[1]

आंगनवाडी में अंडा वितरण

उस समय जिगर की मां पूजा दोबारा गर्भवती थी, और जिगर अपनी मां के अलावा किसी के साथ रह भी नहीं सकता था। इसलिए उन्होंने आठ कि.मी. दूर पोषण पुनर्वास केंद्र जाने से मना कर दिया। परिस्थिति को देखते हुए, पवन ने उन्हें घर पर ही पौष्टिक भोजन जैसे कि तिल-मूंगफली-गुड़ से बने लड्डू और अंडा खिलाने की सलाह देते हुए बताया किये पोषण के उच्च स्त्रोत हैं जो बढ़ते बच्चे के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, और जो उसके वज़न को जल्द ही आवश्यक स्तर तक बढ़ाने में मदद करेंगे। जिगर के माता-पिता तो चाहते ही थे कि उनका बेटा जल्दी स्वस्थ हो जाए, पर उनकी आर्थिक स्थति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे बेटे को इस तरह का खाना खिला पाएं।

जिगर की मां उसको अंडा खिलाते हुए

अंडा खाते हुए जिगर

ग़रीब परिवारों के बीच कुपोषण की दर को कम करने और कुपोषण के प्रति समुदाय में जागरूकता लाने के लिए संस्था द्वारा एक पहल की गई है, जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से जो कमज़ोर बच्चे हैं उन्हें तीन माह तक अंडे और तिल-मूंगफली-गुड़ वाले लड्डू दिए जाते हैं। फ़रवरी 2024 से जिगर को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया गया, जो फ़िलहाल कुछ ही जगहों पर लागू किया गया है। संस्था के एक कार्यकर्ता के पास लगभग पांच से छ: गांवों की ज़िम्मेदारी होती है, हर रोज़ एक ही गांव में नहीं जा सकते, इसलिए वे हफ़्ते के हफ़्ते सात अंडे और सात लड्डू एक साथ ही जिगर के घर पर रखवा देते थे।

जिगर की मां उसको रोज़ अंडा और लड्डू खिलाने लगी। कभी वो अंडे का आमलेट बनाकर खिलाती, तो कभी उबला हुआ अंडा उसके हाथ में दे देती थी। लड्डू तो वह चलते-फिरते दिन में कभी भी खा लेता था। संस्था के कार्यकर्ता द्वारा हर हफ़्ते जिगर का फ़ालोअप लिया जाने लगा, और तीन-चार हफ़्तों के बाद उसकी शारीरिक हालत में परिवर्तन दिखने लगा। इसी तरह लगभग तीन महीने बाद उसका वज़न 9 किलो हो गया। जिगर अब अति गंभीर कुपोषित (Severe Acute Malnutrition या SAM) की स्थिति से मध्य कुपोषित (Moderate Acute Malnutrition या MAM) की श्रेणी में आ गया है। जिगर के माता-पिता अपने बेटे को स्वस्थ-तन्दुरुस्त होते देखकर बहुत ख़ुश हैं।

कुपोषण मुक्त की ओर जिगर

संस्था द्वारा बागली लोकेशन में अब तक 23 गांवों के 94 बच्चों को आंगनवाड़ियों के माध्यम से अंडा कार्यक्रम का लाभ मिला है, और इन गांवों में इस पहल को लोगों ने बहुत सराहा है। इस तथ्य को देखते हुए कि मध्य प्रदेश भारत के उन राज्यों में से एक है जहां कुपोषण की दर बहुत अधिक है, यह बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

[1]पोषण पुनर्वास केंद्र (एन आर सी यानी न्यूट्रिशन रीहॅबिलेशन सेन्टर) भारत सरकार की एक स्वास्थ्य सुविधा है। देश में कई जगहों पर ये केंद्र बने हुए हैं, जहां अति गंभीर कुपोषित बच्चों को भर्ती किया जाता है। उनके समय-समय पर कार्यकर्ताओं द्वारा देखभाल, रहने, खाने और खेलने के लिए उचित प्रबंधन किया जाता है।

लेखन: करण बछानिया, रबीन्द्र कुमार बारिक

स्त्रोत: ममता सोलंकी

फोटोग्राफी: पवन परमार

संपादन: स्मृति नेवटिया

मार्गदर्शक: पिंकी ब्रह्मा चौधरी

पेज लेआउट: वर्षा रंसोरे 


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