Issue 69 -स्कूल व्यवस्था में हुआ सुधार


देवास ज़िले के उदयनगर क्षेत्र में एक गांव है, तातुखेडी, जो जंगलों के बीच बसा हुआ है । यहां के अधिक्तर लोग धाड़की (देहाड़ी) मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं । गांव में पहली से आठवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल की सुविधा है । लगभग सारे बच्चे गांव की सरकारी स्कूल में ही पढ़ते हैं । लेकिन इस स्कूल का खुलने और बंद होने का कोई निश्चित समय नहीं रहता था । लगता था जैसे शिक्षक की मर्ज़ी के मुताबिक़ चलती है स्कूल । बारिश के मौसम में कई बार बच्चे स्कूल से जल्दी घर आ जाते थे और कितनी ही बार बिना वजह ही मास्टर स्कूल की छुट्टी रख देते थे । ऐसे वाक़यात कई दफ़ा होते रहते थे । बच्चों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हो रहा था इससे गांव की महिलाएं काफ़ी चिंतित होने लगीं और उन्होंने अपनी हिस्सेदारी सभा[1] की बैठक में चर्चा के दौरन यह मुद्दा उठाया । बैठक में निर्णय लिया गया कि उन्हें ख़ुद स्कूल जाना चाहिए और देखना चाहिए कि आख़िर मामला क्या है ।

हिस्सेदारी सभा की बैठक

स्कूल में विज़िट के दौरान कई समस्याएं नज़र आईं । स्कूल की छत से पानी टपकता है, जिससे बच्चे अपनी लेखन सामग्री सहित भीग जाते हैं । स्कूल में मिलने वाला मध्यान भोजन बच्चों को नहीं मिल रहा है, बहुत समय से बंद है साथ ही गर्भवती महिलाओं को हर मंगलवार पोषण आहार के पैकेट दिए जाने का नियम है, वह भी नहीं मिल रहा है । स्कूल के सामने जो मैदान है उसमें भी पानी भर जाता है, इस वजह से बच्चों को वहां से निकलने में समस्या आती है, कई बार तो बच्चे फिसल के गिर जाते हैं । महिलाओं ने स्कूल शिक्षक से चर्चा की और पूछा कि उनके विद्यालय में इतनी समस्याएं चल रही हैं तो स्कूल प्रशासन क्या कर रहा है ? शिक्षक ने सभी को तसल्ली देते हुए कहा कि वे जल्द ही सारा काम करवा देंगे और मध्यान भोजन तो अगले दिन से ही शुरू करवा देंगे । शिक्षक की बात पर विश्वास करके सारी महिलाएं एक उम्मीद के साथ वापस घर आ गईं । लगभग एक हफ़्ता बीत गया परन्तु स्कूल व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ, न तो स्कूल में बच्चों को खाना मिला न छत की मरम्मत हुई, स्कूल में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ । तब महिलाओं ने हिस्सेदारी सभा की बैठक के संचालक से, जो समाज प्रगति सहयोग संस्था के कार्यकर्ता होते हैं, मदद मांगी । संस्था कार्यकर्ता ने उन्हें जनपद पंचायत बागली जाकर आवेदन देने  की सलाह दी । परन्तु उससे पहले एक बार फिर इन समस्याओं पर स्कूल शिक्षक से बात करके देखने को कहा ।

गांव की महिलाएं स्कूल में विज़िट करते समय

हिस्सेदारी सभा की सदस्याएं फिर से स्कूल पहुंचीं और इस बार उन्होंने स्कूल शिक्षक के किसी भी बहाने को न सुनते हुए सीधे कहा कि “आप एक बार हमारी बात जनशिक्षक[2] जी से करवा दो, नहीं तो स्कूल की समस्याओं को लेकर हम सभी कल जनपद पंचायत जाएंगीं” । महिलाओं की एकजुटता और साहस को देखकर, स्कूल शिक्षक घबरा गए । उन्होंने बिना और आनाकानी किए जनशिक्षक का नंबर महिलाओं को दे दिया । महिलाओं ने फ़ोन पर जनशिक्षक को स्कूल में चल रही सारी समस्याओं से अवगत करवाया । एक-दो दिन बाद जनशिक्षक महोदय ने तातुखेडी गांव की स्कूल का दौरा किया । स्कूल शिक्षक को बहुत खरी-खोटी सुनाई, साथ ही मध्यान भोजन बनाने वाली महिलाओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को भी बुलवाया और सही ढंग से कार्य करने की चेतावनी दी । तीन दिन के अंदर-अंदर स्कूल के छत की मरम्मत हो गई, स्कूल के मैदान में दो ट्रोली मुरम डलवाकर मैदान को समतल करवा दिया और बच्चों को पोषण-युक्त भोजन भी मिलने लगा । अब तातुखेडी गांव के बच्चों को स्कूल में पहले जैसी एक भी समस्या नहीं होती ।

स्कूल में मध्यान भोजन के लिए खाना बन रहा है

स्कूल में बच्चे मध्यान भोजन खा रहे हैं

इस तरह तातुखेडी की महिलाओं ने स्कूल के मामले को अपने हाथ में लेकर सारी समस्याओं का समाधान करवाया और बदलाव का एक मार्ग प्रशस्त किया । हिस्सेदारी सभा की बैठकों ने निश्चित रूप से महिलाओं को एक साथ आ पाने और अपनी समस्याओं पर चर्चा करके समाधान खोज पाने की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभाई है । गांव की महिलाओं को इसी तरह गांव की समस्याओं की पहचान होती है, और सामूहिक कोशिशों के ज़रिए इनके समाधान के लिए, और अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए, आगे बढ़ने का साहस मिलता है ।

गर्भवती महिलाओं को फिर से आंगनबाड़ी में पोषण आहार मिलना शुरू हो गया है

स्कूल के मैदान में मरम्मत का काम शुरू

[1] ये गांव के स्वयं सहायता समूह के सदस्यों द्वारा बुलाई गई मीटिंग होती हैं, जिनमें गांव से जुड़े सार्वजानिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है – पीने का पानी उपलब्ध होना, शौचालय, राशन की दुकान, आंगनवाड़ी और स्कूल की व्यवस्था, पेन्शन योजनाएं, प्रधान मंत्री आवास योजना, इत्यादि ।

[2] जनशिक्षक शिक्षा विभाग के अधिकारी होते हैं, जो स्कूलों की मोनिटरिंग करते हैं और स्कूल व्यवस्था पर निगरानी रखते हैं ।

लेखन: रोशनी चौहान

स्त्रोत: महेश गुर्जर

फ़ोटोग्राफ़ी: महेश गुर्जर, रेशम जामले

अनुवाद ( हिंदी से अंग्रेजी) : स्मृति नेवटिया

मार्गदर्शक: पिंकी ब्रह्मा चौधरी

पेज लेआउट: रोशनी चौहान


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